Saphala Ekadashi पर तुलसी की पूजा से मिलेगी उन्नति
Saphala Ekadashi पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति को सफलता, सुख-समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
Saphala Ekadashi पर तुलसी की पूजा का भी विशेष महत्व है। तुलसी को भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। इसलिए इस दिन तुलसी की पूजा करने से व्यक्ति को लक्ष्मी जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
Saphala Ekadashi पर तुलसी की पूजा कैसे करें:
Saphala Ekadashi पर तुलसी की पूजा निम्नलिखित विधि से करें:
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
- घर के मंदिर को साफ करें और गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें।
- भगवान विष्णु की प्रतिमा को फूल, फल, चंदन, तुलसी दल और अन्य पूजन सामग्री अर्पित करें।
- तुलसी माता को जल अर्पित करें और लाल चुनरी पहनाएं।
- तुलसी के पास घी का दीपक जलाएं और 11 या 21 बार परिक्रमा करें।
- तुलसी मंत्र और चालीसा का पाठ करें।
- आरती करें और प्रसाद वितरित करें।
Saphala Ekadashi(सफला एकादशी) पर तुलसी की पूजा क्यों करें:
Saphala Ekadashi (सफला एकादशी) पर तुलसी की पूजा करने के निम्नलिखित लाभ हैं:
- व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
- व्यक्ति को सफलता, सुख-समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- व्यक्ति को लक्ष्मी जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- व्यक्ति के घर में सुख-शांति और समृद्धि का आगमन होता है।
- व्यक्ति के जीवन से सभी कष्ट दूर होते हैं।
सफला एकादशी का व्रत कैसे करें:
सफला एकादशी का व्रत निम्नलिखित विधि से करें:
- एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
- व्रत का संकल्प लें।
- पूरे दिन निराहार रहें।
- शाम को भगवान विष्णु की पूजा करें।
- तुलसी की पूजा करें।
- प्रसाद ग्रहण करें।
सफला एकादशी का व्रत रखने के नियम:
सफला एकादशी का व्रत रखने के निम्नलिखित नियम हैं:
- व्रत का संकल्प लेने से पहले किसी योग्य ब्राह्मण से आशीर्वाद लें।
- व्रत के दौरान शुद्ध और पवित्र रहें।
- किसी भी प्रकार का मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन आदि का सेवन न करें।
- झूठ, चोरी, क्रोध आदि बुरे कर्मों से बचें।
सफला एकादशी की कथा:
चम्पावती नगरी में महिष्मान नाम का राजा रहता था. उसके चार पुत्र थे. उनमें सबसे बड़ा पुत्र लुम्पक था. वह दुराचारी था. वह मदिरापान और वेश्यागमन जैसे पाप करता था. वह हमेशा ही ब्राह्मण, भगवान, संत, भक्त आदि का अपमान और उन्हें परेशान करता था | अपने बड़े बेटे के पाप और कुकर्म को देखकर राजा माहिष्मत ने उसका नाम लुम्भक रखकर उसे अपने राज्य से बेदखल कर दिया था | लुम्पक शास्त्रानुसार राज्य करने लगा. उसके स्त्री, पुत्र आदि सारा कुटुम्ब भगवान नारायण का परम भक्त हो गया | वृद्ध होने पर वह भी अपने पुत्र को राज्य का भार सौंपकर वन में तपस्या करने चला गया और अंत समय में वैकुंठ को प्राप्त हुआ | सफला एकादशी के प्रभाव से उसे राज्य और पुत्र का वरदान मिला. इससे लुम्भक का मन अच्छे की ओर प्रवृत्त हुआ और तब उसके पिता ने उसे राज्य प्रदान किया