जादू की छड़ी

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किसी गुड़िया सी, भोली- भाली सी
मेरी नन्हीं सी बिटिया
कभी ठुनकते हुए
कभी बिलखते हुए
आंखों से लोर टपकाते हुए
मेरे पास ठुमकते हुए आती है
और अपना सारा दुखड़ा सुनाती है
मैं उसकी आंखों से पोछती हूं आंसू
और बड़े प्यार से थपथपाती हूं
उसके फूलों से खिले दोनों गाल
मैं बड़े प्यार से उसके माथे को चूमती हूं
और उसके सिर पर फेरती हूं हाथ
पता नहीं कैसे मेरे हाथ जादू की छड़ी बन जाते हैं
जैसे बचपन में मां के कोमल हाथ
मेरे लिए बन जाते थे जादू की छड़ी
जैसे मैं बचपन में मां को समझती थी जादुई परी
वैसे मैं भी अपनी बेटी के लिए बन जाती हूं एक परी
मुझे ऐसा लगता है
अपनी छाती की दूध के साथ मेरे तन में भर दी थी मां
वो परी वाली जादुई शक्ति
इसीलिए मैं भी मां की तरह बन गई हूं एक परी
और मेरे हाथ बन गए हैं जादू की छड़ी
मुझे ऐसा लगता है
दुनिया की सारी माताएं
अपने बेटे- बेटियों के लिए होती है एक जादू की छड़ी
मुझे पूरा यकीन है
दुनिया की सारी औरतें
अपने संतान के लिए होती है स्वर्ग से आयी एक परी

Smita Gupta

Assi. prof.(Hindi)
M. Ed. , Hindi Patrkarita
smita78gupta@gmail.com