कालवृत्त: समय यात्रा पर आधारित एक रोमांचक हिंदी कहानी

शहर की पतली गलियों में, हल्की बारिश की बूंदें ज़मीन से टकरा रही थीं, और दूर कहीं बिजली की गड़गड़ाहट वातावरण में रहस्य घोल रही थी। यही वह शाम थी जब आरव मिश्रा की ज़िंदगी हमेशा के लिए बदलने वाली थी।

आरव, 17 वर्षीय किशोर, अपनी साइकिल पर पुराने शहर की ओर जा रहा था। उसके बैग में कुछ किताबें थीं, और दिल में एक अधूरी प्यास — जानने की, समझने की, और शायद खुद को खोजने की। उसके माता-पिता कामकाजी थे और वह अधिकतर समय अपने कमरे में कंप्यूटर या किताबों में डूबा रहता।

शहर के उस हिस्से में, जहाँ हर दीवार पर वक्त की धूल जमी थी और गलियों में इतिहास की सरसराहट सुनाई देती थी, एक पुराना पुस्तकालय खड़ा था—“श्री हर्षवर्धन सार्वजनिक पुस्तकालय”। ये वो जगह थी जिसे लोग भूल चुके थे, मगर किताबें वहाँ अब भी समय के रहस्यों को छुपाकर रखती थीं।

आरव की दुनिया

आरव मिश्रा, एक 17 वर्षीय छात्र, बाकियों से अलग था। उसके दोस्त वीडियो गेम और सोशल मीडिया में उलझे रहते, पर आरव का मन किताबों और पुरानी तकनीकों में रमता था। उसके कमरे की दीवारों पर पुराने नक्शे टंगे थे, और मेज़ पर टूटी हुई घड़ियाँ, रेडियो, और कंप्यूटर पार्ट्स फैले रहते।

कभी-कभी उसे लगता जैसे वो इस युग का हिस्सा ही नहीं है।

उस शाम, जब बाहर हल्की बारिश हो रही थी, और बिजली की गड़गड़ाहट से शहर थरथरा रहा था, आरव की आंखों में एक अलग ही चमक थी। उसने सुना था कि पुस्तकालय में एक किताब है—जिसमें समय यात्रा का उल्लेख है।

कालवृत्त और समय की धारा।”

रहस्यमयी पुस्तकालय

पुस्तकालय के दरवाज़े पर लगे पुराने पीतल के हैंडल को जब आरव ने घुमाया, तो भीतर से पुरानी लकड़ी की खुशबू और धूल की मिलीजुली महक उसके नथुनों से टकराई। श्री सक्सेना, पुस्तकालय के बुज़ुर्ग रक्षक, एक कुर्सी पर झपकी ले रहे थे।

“अंकल,” आरव ने धीमे से कहा।

श्री सक्सेना ने चश्मा सीधा किया और मुस्कराए, “तुम फिर आ गए आरव? क्या खोज रहे हो आज?”

“वो किताब… कालवृत्त वाली…”

श्री सक्सेना की मुस्कान फीकी पड़ गई। “बिलकुल पक्की हो तुम… चलो मेरे साथ।”

एक अद्भुत किताब

वे दोनों पीछे की अलमारी तक गए, जहाँ सैकड़ों किताबें अपनी कहानियों में सोई हुई थीं। एक कोना था, जिसमें एक मोटी किताब लकड़ी के केस में बंद थी। श्री सक्सेना ने उसे खोला और किताब निकाल कर आरव के हाथ में रख दी।

किताब भारी थी, जैसे उसमें शब्दों के बजाय सदियाँ भरी हों।

उसके आवरण पर कुछ अक्षर उकेरे हुए थे, जो आरव को अनजान होने के बावजूद, अजीब रूप से पहचाने से लगे।

“इस किताब को कोई पढ़ नहीं पाया अब तक,” श्री सक्सेना ने कहा, “लेकिन तुम शायद…”

आरव ने किताब खोली। पहले कुछ पन्ने पुराने ग्रंथों की तरह थे—संस्कृतनुमा भाषा में लिखे हुए। फिर एक पृष्ठ के अंदर एक तह किया हुआ कागज़ मिला।

एक नक्शा।

भूमिगत रास्ता

नक्शे पर एक अजीब आकृति बनी थी—पुस्तकालय का खाका, और उसमें एक छुपे हुए रास्ते का संकेत। रात को जब पुस्तकालय बंद हुआ, आरव ने वहाँ छुपकर खुद को बंद कर लिया। उसकी साँसे तेज थीं, लेकिन उत्साह और डर के मेल से भरी हुई।

वह नक्शे के अनुसार उस जगह पहुँचा जहाँ पुरानी अलमारी के पीछे ज़मीन में एक हल्का सा उभार था। उसने ज़ोर से दबाया, और एक हल्की सी “क्लिक” की आवाज़ आई। ज़मीन में एक पत्थर हटा, और उसके नीचे सीढ़ियाँ थीं—काली, संकरी, और समय के परे जाने का निमंत्रण देती हुई।

समय की प्रयोगशाला

आरव धीरे-धीरे सीढ़ियाँ उतरने लगा। हर कदम पर हवा ठंडी और भारी होती जा रही थी। आख़िरकार वह एक बड़े कमरे में पहुँचा, जहाँ दीवारों पर नीली रोशनी जगमगा रही थी। मशीनें भिनभिना रही थीं, और एक वैज्ञानिक सफ़ेद कोट पहने एक कंप्यूटर के सामने खड़ा था।

“तुम आ ही गए,” उस आदमी ने बिना देखे ही कहा।

आरव चौंक गया। “आप मुझे कैसे जानते हैं?”

वह आदमी मुड़ा—सफ़ेद बाल, तेज़ आँखें और एक ऐसा चेहरा जो अपने पीछे सैकड़ों रहस्य छुपाए था।

“मैं डॉ. वेदांत शास्त्री हूँ। और तुम… तुम्हें समय ने खुद चुना है।”

आरव की रग-रग में कुछ कौंधा।

“मैं नहीं जानता कि क्या चल रहा है… यह सब क्या है?”

डॉ. शास्त्री मुस्कराए, “यह एक प्रयोगशाला है… लेकिन साधारण नहीं। यह ‘काल प्रयोगशाला’ है। और वो मशीन”—उन्होंने एक चमकती हुई गोल मशीन की ओर इशारा किया—“वो एक ‘काल प्रवेश यंत्र’ है। टाइम पोर्टल।”

आरव की आँखें फैल गईं। “क्या आप सच में समय में यात्रा कर सकते हैं?”

“नहीं मैं नहीं…” डॉ. शास्त्री बोले, “पर शायद तुम कर सको।”

आकस्मिक सक्रियता

आरव जैसे ही मशीन के पास गया, उसके बैग से वो नक्शा बाहर गिरा। वह नक्शा मशीन के सेंसर के पास पहुँचा और यंत्र अचानक जाग उठा। आवाज़ें तेज़ हुईं, रोशनी चटकने लगी, और हवा में एक कंपन फैल गया।

“नहीं! अभी नहीं!” डॉ. शास्त्री चिल्लाए।

लेकिन बहुत देर हो चुकी थी।

आरव की आँखों के सामने सब कुछ घूम गया—जैसे समय खुद उसके चारों ओर मुड़ रहा हो।

एक पल में वह वहीं था, और अगले ही पल…

समय का विचलन

…वह एक खुले मैदान में गिरा। चारों तरफ़ ऊँची दीवारें, सैनिकों की आवाज़ें, और दूर कहीं हाथी और घोड़ों की टापें। आरव ने ऊपर देखा—एक विशाल किला, जिसमें मौर्यकालीन वास्तुकला की भव्यता चमक रही थी।

“ये… ये कहाँ हूँ मैं?” वह बुदबुदाया।

उसे नहीं पता था, लेकिन वह अब अतीत में था। और उसकी यात्रा की शुरुआत हो चुकी थी।

अध्याय 2: कालचक्र का रहस्य

अतीत की हवा में पहली साँस

आरव ज़मीन पर गिरा हुआ था, उसकी हथेलियों पर मिट्टी लगी थी, और आँखों में हैरानी की चिंगारियाँ। चारों तरफ़ एक अजीब सी भाषा में लोगों की बातें सुनाई दे रही थीं। कुछ लोग धोती पहने, हाथों में लाठी लिए जा रहे थे, और कुछ बालक मिट्टी के खिलौनों से खेल रहे थे।

“ये कौन सी जगह है… और कौन सा युग?”

उसने उठकर चारों ओर देखा। दूर एक विशाल गेट दिखाई दिया, जिस पर ब्राह्मी लिपि में कुछ लिखा था। उसने अपने फोन से फोटो खींचने की कोशिश की, लेकिन फोन बंद हो चुका था। शायद समय यात्रा ने उसकी बैटरी या तकनीक पर असर डाला था।

पास ही एक वृद्ध साधु बैठा हुआ था। वह आरव की ओर देखकर बोला, “काल ने तुझे यहाँ भेजा है, बालक। तेरा यहाँ आना, कोई संयोग नहीं।”

आरव का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। “आपको कैसे पता?”

“मैं समय को पढ़ता हूँ,” साधु बोला, “और तू समय की धारा में एक विचलन है।”

मौर्यकाल में प्रवेश

आरव को जल्दी ही समझ आ गया कि वह मौर्य साम्राज्य के समय में है—संभवत: सम्राट अशोक के शासन काल में। शहर में हर तरफ़ व्यापार, कला, और बौद्ध दर्शन की झलक थी। हर गली में कुछ कहानियाँ बसी थीं।

उसे एक लड़का मिला—नाम था चिरंतन। वह जिज्ञासु और चंचल था, और आरव की भाषा और कपड़ों से समझ गया कि वह “विदेश” से आया है।

“तुम यहाँ के नहीं लगते,” चिरंतन बोला।

आरव ने मुस्कराकर कहा, “तुम कह सकते हो कि मैं बहुत दूर से आया हूँ… बहुत ज़्यादा दूर।”

चिरंतन ने उसकी मदद की—रहने की जगह दिलवाई, कपड़े दिलवाए, और समय के रीति-रिवाज समझाए। लेकिन आरव का मन वहाँ नहीं लगा। वह जानता था कि उसे कुछ खोजना है—शायद समय यंत्र से जुड़ा कोई सुराग, कोई चिन्ह जो उसे वापस ला सके।

अशोकन शिलालेख और समय की गूंज

एक दिन जब वह चिरंतन के साथ एक बौद्ध विहार गया, वहाँ एक शिलालेख पर कुछ उकेरा हुआ देखा। वह वही चिन्ह था जो उसकी किताब पर था—तीन वृत्तों से घिरा त्रिकोण।

“यह चिन्ह…” वह बुदबुदाया।

चिरंतन ने बताया कि यह एक प्राचीन रहस्य का संकेत माना जाता है, जिसे ‘कालवृत्त’ कहते हैं। कहा जाता है कि सम्राट अशोक ने खुद किसी समय-द्वार को सील किया था ताकि कोई उसका दुरुपयोग न कर सके।

“तो क्या मेरा यहाँ आना इसी से जुड़ा है?” आरव सोचने लगा।

डॉ. शास्त्री की चेतावनी

अचानक, एक रात उसके सपने में डॉ. वेदांत शास्त्री प्रकट हुए। वे धुंध में लिपटे थे, जैसे किसी दूसरे आयाम से बोल रहे हों।

“आरव, समय की दीवारें पतली हो रही हैं। तुम्हारे हर कदम का असर भविष्य पर पड़ेगा। अगर तुम सही रास्ता नहीं चुनोगे, तो समय की धारा टूट सकती है।”

“मैं क्या करूँ?” आरव ने घबराकर पूछा।

“समय के हर युग में एक ‘कालकुण्ड’ छिपा है। तुम्हें उसे खोजना होगा। वही तुम्हारी वापसी की चाबी है।”

खंडहर और छुपा रहस्य

अगले दिन, आरव और चिरंतन एक प्राचीन खंडहर की ओर निकले—जहाँ कहा जाता था कि समय से जुड़ा कोई रहस्य छिपा है। रास्ता कठिन था—जंगल, जंगली जानवर, और अचानक आई आँधी ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन आरव की लगन अडिग थी।

खंडहर में एक गुफा मिली, जिसमें अंदर एक गोलाकार पत्थर था। पत्थर पर वही चिन्ह खुदा हुआ था। उसने जैसे ही उसे छुआ, एक हल्की सी गूंज सुनाई दी।

“काल आ गया है… द्वार खुलने को है…”

कालचक्र की पहली धुरी

गुफा की दीवार पर अचानक चित्र उभरने लगे—एक चक्र जिसमें भूत, वर्तमान और भविष्य की घटनाएँ घूम रही थीं। आरव ने देखा—एक लड़की, नीली पोशाक में, भविष्य से आती हुई दिखी।

“वह कौन है?” उसने चिरंतन से पूछा।

“वह… ‘कालशिला की रक्षक’ है। जब समय बिगड़ता है, वह प्रकट होती है।”

आरव ने ठान लिया—उसे उस रक्षक को खोजना है। शायद वही उसे आगे का रास्ता दिखा सके।

कालशिला की खोज

आरव और चिरंतन उस गुफा से बाहर निकले, और अब उनके सामने एक नया लक्ष्य था—कालशिला, वह पवित्र स्थान जहाँ समय की ऊर्जा केंद्रित होती है। किंवदंतियों के अनुसार, यह शिला हिमालय की तलहटी में कहीं स्थित थी और केवल वही लोग उसे पा सकते थे जिनके इरादे निर्मल हों और जिनकी नियति समय से बंधी हो।

“हम वहाँ कैसे पहुँचेंगे?” चिरंतन ने पूछा।

आरव ने गहरी साँस ली, “मुझे नहीं पता… लेकिन मुझे लगता है, हम सही दिशा में हैं।”

सम्राट का संदेश

उसी रात, सम्राट अशोक की एक विशेष सभा आयोजित हुई थी जहाँ चिरंतन को अपने शिक्षक के साथ आमंत्रित किया गया। आरव भी उनके साथ गया, लेकिन छिपकर। सभा में सम्राट खुद एक नए निर्माण की योजना पर चर्चा कर रहे थे—एक स्तूप, जो कालचक्र की रक्षा के लिए बनाया जाएगा।

“हमारे ज्ञानी कहते हैं, समय एक जीवित तत्व है,” सम्राट बोले, “और वह हमें देखता है। यदि हम समय का अपमान करें, तो वह हमें मिटा सकता है।”

आरव के रोंगटे खड़े हो गए। क्या सम्राट को भी कालचक्र की जानकारी थी?

सभा के बाद, सम्राट ने आरव को अलग बुलाया।

“मैं जानता हूँ तुम कौन हो, और कहाँ से आए हो। तुम्हारी आँखों में भविष्य की छाया है।”

आरव स्तब्ध था।

“क्या आपने कभी समय यात्रा की है?” उसने धीरे से पूछा।

“नहीं,” सम्राट ने मुस्कराते हुए कहा, “लेकिन मैं समय को महसूस कर सकता हूँ। और मैं तुम्हें एक मार्ग दिखा सकता हूँ।”

मार्गदर्शक योगिनी

सम्राट अशोक ने उसे एक योगिनी का नाम बताया—ऋषिका, जो हिमालय की एक गुफा में ध्यानस्थ थी और जिसे ‘काल की रक्षक’ कहा जाता था। वह उसे समय के द्वार तक ले जा सकती थी।

आरव और चिरंतन ने अगले ही दिन यात्रा शुरू की—घने जंगलों, बर्फीले पहाड़ों और तीव्र हवाओं के बीच से होते हुए।

इस यात्रा में, आरव को बार-बार सपनों में भविष्य की झलक मिलती—एक युद्धरत संसार, जिसमें रोबोट और मनुष्य एक-दूसरे से लड़ रहे थे, एक उजड़ा हुआ शहर, और एक लड़की जो बार-बार पुकारती थी—“आरव! जल्दी करो!”

ऋषिका की गुफा

तीन दिनों की कठिन यात्रा के बाद, वे ऋषिका की गुफा तक पहुँचे। वह एक रहस्यमयी महिला थी—सफ़ेद वस्त्रों में, आँखें बंद, लेकिन जैसे उसने सब देख रखा हो।

“मैं जानती थी तुम आओगे,” उसने कहा।

“क्या आप मुझे समय में वापस भेज सकती हैं?” आरव ने पूछा।

“नहीं। लेकिन मैं तुम्हें रास्ता दिखा सकती हूँ। समय को समझना होगा तुम्हें। तुम केवल यात्री नहीं, तुम धारणकर्ता हो। तुम्हारे अंदर समय की ऊर्जा है।”

उसने एक छोटा सा क्रिस्टल आरव को दिया—‘कालमणि’। यह उस ऊर्जा को नियंत्रित करता था जो समय-द्वार को खोल सकती थी।

“लेकिन ध्यान रखना,” ऋषिका ने चेतावनी दी, “हर बार जब तुम कालचक्र के निकट जाओगे, कोई न कोई बलिदान माँगा जाएगा।”

रहस्यमयी आक्रमण

गुफा से लौटते समय, अचानक उन पर हमला हुआ। कुछ अजीब सी पोशाक में लोग, जिनकी आँखें चमक रही थीं और जिनके हथियार साधारण नहीं थे। वे चुपचाप हमला कर रहे थे—बिना किसी आवाज़ के।

“ये कौन हैं?” चिरंतन चिल्लाया।

“ये समय के भक्षक हैं,” ऋषिका ने कहा, “वे तुम्हारे जैसे यात्रियों को रोकने आते हैं, ताकि समय बिखर जाए।”

आरव ने कालमणि को उठाया और ज़ोर से हवा में लहराया। एक रोशनी फैली, और भक्षक धुएँ में बदलते चले गए।

लेकिन इस टकराव ने कुछ तोड़ दिया—गति

समय की दरार

जैसे ही भक्षक गायब हुए, ज़मीन काँपने लगी, आकाश में दरारें दिखने लगीं, और हवा में अजीब सी घुटन फैल गई।

“समय फटने लगा है…” ऋषिका ने कहा, “अब तुम्हारे पास ज़्यादा समय नहीं है।”

आरव जान गया कि उसे आगे बढ़ना होगा। अगला पड़ाव होगा—भविष्य

और वहाँ… वह लड़की उसका इंतज़ार कर रही थी।