अभिशप्त प्रेम की दो नायिकाएं

आसमान में पूर्णिमा का चांद मंद मंद हँस रहा है। हवा भी हौले हौले थिरक रही है। ऐसे मौसम में कनखल प्रदेश में मध्य रात्रि में दो सुंदर स्त्रियां विचरण कर रही थीं। वे दोनों मौन साधे आत्मलीन होकर इधर- उधर घूम रही थीं। जब दोनों एक- दूसरे के अत्यंत करीब आयीं, तो उनकी नज़रें टकरा गईं । उन दोनों की आंखों में विस्मय का भाव उभरा ।  कनखल की भूमि पर एक अजनबी स्त्री को देखकर दूसरी महिला ने उससे पूछा – बहन, तुम कौन हो ? मध्य रात्रि में तुम अकेली इस निर्जन प्रदेश में क्यों भटक रही हो ?
मैं सीता हूं। मुझे स्वयं यह पता नहीं है कि मैं इस प्रदेश में कब और कैसे पहुंच गई ! अपना संक्षिप्त परिचय देते हुए सीता ने भी उससे पूछा- बहन, यह कौन सा प्रदेश है और तुम कौन हो ? मेरी तरह तुम भी इस निर्जन इलाके में क्यों भटक रही हो ?
मैं सती हूं। दक्ष प्रजापति की पुत्री। शिवप्रिया । अपने बारे में यह बताकर सती तुरंत बोली- क्या तुम अयोध्या के राम की पत्नी सीता हो ?
हां, मैं कभी राम की पत्नी थी, लेकिन अब परित्यक्ता हूं। आज मैं सिर्फ सीता हूं। नि:संग हूं। दुख से सने स्वर में सीता ने चंद लफ़्जों में अपनी त्रासदी बयान कर दी। सीता के परित्यक्ता कहे जाने पर सती को आश्चर्य हुआ, क्योंकि उसने खुद अपनी आंखों से देखा था कि सीता के वियोग में राम व्याकुल होकर जंगल में भटक रहे थे। वह अर्द्ध विक्षिप्त दिख रहे थे। वह पेड़ और पशु- पंछियों से भी सीता का पता पूछ रहे थे। जिस सीता के वियोग में राम अर्द्ध विक्षिप्त हो गए थे, उसी का परित्याग कर दिया ? यह कैसे और क्यों हुआ, यह जानने के लिए सती अधीर हो गई। उसने सीता से राम से अलगाव का सबब पूछा। सीता ने अपने अपहरण, रावण के मरण और अपनी अग्नि परीक्षा की गाथा सुनाने के बाद कहा-  अयोध्या में किसी ने रावण के साथ मेरे दैहिक संबंध की बात फैला दी। तब मैं गर्भवती थी। मेरी कोख में लव और कुश पल रहे थे। एकदिन लक्ष्मण मुझे रथ में बिठाकर जंगल में ले गए। तब मुझे पता चला कि राम ने मेरा परित्याग कर दिया है। संभवतः अग्नि परीक्षा के बाद भी राम के मन के किसी कोने में संदेह का कोई कीड़ा बचा रह गया था। मैंने दुख और क्षोभ भरे स्वर में लक्ष्मण से कहा- अगर अयोध्यावासी मेरे चरित्र पर संदेह जता रहे थे, तो राम ने पुनः अग्नि परीक्षा क्यों नहीं ले ली लक्ष्मण ? मैं अपने अपमान से तिलमिला उठी और रथ से उतरकर अकेली वन में अज्ञात दिशा में चल पड़ी। संयोग से वाल्मीकि ऋषि का आश्रम तक पहुंच गई, जहां ऋषिवर ने मुझे बेटी की तरह रखा। एक दिन मैंने जुड़वां बच्चे लव और कुश को जन्म दी। वे दोनों किशोर वय के होने पर अपने पिता के संरक्षण में चले गए और मैं धरती में समा गई। इससे मेरे शरीर का नाश हो गया, लेकिन मैं मृत्यु को प्राप्त नहीं कर सकी। मैं सूक्ष्म शरीर के साथ आज भी जीवित हूं। प्रेम विहीन जीवन जी रही हूं। इधर-उधर भटक रही हूं।
सीता की व्यथा सुनकर सती के भी हृदय के घाव हरे हो गए। उसकी आंखें डबडबा गईं। उसकी आंखों में वह घटना चलचित्र की भांति साकार हो उठी। उसने सीता से कहा- मैंने तो शिव से प्रेम विवाह किया था। इससे मेरे पिता दक्ष प्रजापति नाराज हो गए थे। मेरा नैहर से नाता टूट गया। एकदिन मैं और शिव जंगल में घूम रहे थे, तो राम दिखे। शिव ने उनको दूर से मौन नमन किया। यह देखकर मुझे आश्चर्य हुआ, तो शिव ने कहा- ये पारब्रह्म के अवतार हैं। अपनी पत्नी के वियोग में व्याकुल, अर्द्ध विक्षिप्त और विलाप करने वाला यह मनुष्य पारब्रह्म का प्रतिरूप है, इस बात पर मुझे विश्वास नहीं हुआ। तब शिव ने मुझे परीक्षा लेने को कहा। मैं सती से सीता बन गई। हालांकि राम की परीक्षा लेने के लिए मैंने यह स्वांग भरा था, लेकिन शिव की दृष्टि में यह मेरा अक्षम्य अपराध हो गया। उन्होंने मेरा मानसिक रूप से परित्याग कर दिया। तब मैं अपने पिता के यज्ञ में बिना न्योता के गई और परोक्ष रूप से शिव के प्रति अपनी निष्ठा और प्रेम को व्यक्त करते हुए यज्ञाग्नि में अपनी देह की आहूति दे दी। देहांत के बाद मेरी भी आत्मा भटक रही है, लेकिन मैं इस कनखल भूमि को छोड़कर कहीं नहीं जाती हूं। अपने-अपने अभिशप्त प्रेम की गाथा सुनाने के बाद सती और सीता एक-दूसरे के गले से लिपट गईं और बहुत देर तक आंखों से आंसू बहाती रही।
कुमार बिंदु