भाड़ में जाओ तुम

अपनी मां की अंगुली थामे
नन्हें पांवों से धरती नापते
सामने से चला आ रहा है एक बच्चा
फिर भी तुम्हारे हाथ उसकी ओर नहीं लपके
पुआ जैसे उसके गाल को नहीं छुए
तो भाड़ में जाओ तुम
अभी- अभी तुम्हारे बगल से गुजरी
अभी- अभी खिली गुलाब की कली सी
यौवन के मद में नागिन सी बलखाती एक युवती
और सिहर के नहीं ठिठके अगर तुम्हारे पांव
और अपनी सांसों में नहीं भरे यदि उसकी देह की मादक गंध
तो भाड़ में जाओ तुम
वो जो बहुत देर से सड़क की देहरी लांघकर
जाने के लिए व्यग्र दिख रही है इस पार से उस पार
उस कृशकाय वृद्धा की ओर अगर नहीं लपके तुम्हारे हाथ
तो भाड़ में जाओ तुम
पत्रहीन
पुष्पहीन
ठूंठ वृक्ष सा
जीवन जिए तुम
भाड़ में जाओ तुम
कुमार बिंदु