मौसम
मौसम की देखिए ये नई अदाएं
लहू के रंग से हुई रंगीं फ़िज़ाएं.
खिल उठे है ज़ख़्म फूलों की तरह
जब भी हासिल हुईं उनकी दुआएं.
ले रही अंगड़ाई यूं जुनून-ए-‘इश्क़
दिल को तज्वीज़ फिर होगी सजाएं.
ये कहां तुम ले आए मुझे कोलंबस
है साकी न मय न अजां की सदाएं.
प्यास बुझती कहां कभी खंजरों की
आ सागर उठा प्यास दिल की बुझाएं।
चमन में कैसी बहार या ख़ुदा आयी है
नर्म शाख़ों ने लचकने की सजा पायी है.
उल्फ़त में तिजारत और सजदे में सियासत
ये रस्म, ये रवायत ले कर कज़ा आयी है.
हर-सम्त है आग नफरत की, अदावत की
भरके दामन में बारूद हवा लायी है.
फिर कोई क़यामत हुई बेज़ार, बेक़रार
फिर कहीं से मोहब्बत की सदा आयी है.
जिस्म से रूह तलक है दर्द का सैलाब
दरवेश ने ये कैसी अलाप लगायी है।
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कुमार बिंदु