प्रेम का चटक रंग
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आज फिर फागुन ने दी
मेरे मन की देहरी पर दस्तक
आज फिर मैंने खोले
स्मृतियों के कपाट
आज फिर मेरे मन के दुआरे खड़े थे
बीते दिन
बीते पल
बीती बातें
आज फिर मुझे याद आया प्रेम का चटक रंग
आज फिर मैंने फोटो गैलरी में कुछ तस्वीरों को देखा
उन तस्वीरों के चटक रंग पर बर्फ जमी पड़ी थी
वसंत ऋतु का मौसम सहसा पौष बन गया
भरी दुपहरी में सूर्य ठंड से अकड़ गया
चिड़ियों का कलरव शोक- गीत में ढल गया
….. कुमार बिंदु