यह कहानी है तेनालीराम की, जिन्होंने एक बार अपनी चालाकी से महाराज कृष्णदेव राय के दरबार में एक महत्वपूर्ण प्रश्न का समाधान किया।
एक दिन महाराज ने अपने दरबार में घोषणा की, “आज हमारे दरबार में कोई विशेष कार्य नहीं है, और हम सभी को ईश्वर की कृपा से कोई समस्या नहीं है। हम किसी विषय पर चर्चा करेंगे। क्या कोई विचार दे सकता है कि हम किस विषय पर चर्चा करें?”
तेनालीराम ने कहा, “महाराज, विषय का चयन आपको करना चाहिए।”
महाराज ने सोचा और पूछा, “क्या आपको लगता है कि ब्राह्मण को पूजनीय मानना चाहिए?”
सभी दरबारी और मंत्री सहमत थे, और एक मंत्री ने कहा, “हां, महाराज, ब्राह्मण गाय को पवित्र मानते हैं, क्योंकि गाय को कामधेनु का प्रतीक माना जाता है।”
महाराज के इस प्रश्न का उत्तर सभी को सरल लगा। फिर महाराज ने पूछा, “तेनालीराम, क्या आपको इस उत्तर से संतुष्ट है या कुछ और सोचते हैं?”
तेनालीराम ने हाथ जोड़कर कहा, “महाराज, गाय को तो सभी पवित्र मानते हैं, चाहे मानव हो या देवता। और ऐसा मानने वाला मैं अकेला नहीं हूँ, हमारे विद्वान का भी यही विचार है।”
महाराज ने और एक प्रश्न पूछा, “तो ब्राह्मण गौ-चर्म से बने जूते-चप्पल क्यों पहनते हैं?”
दरबार में सब चुप हो गए, क्योंकि इस प्रश्न का कोई ठोस उत्तर नहीं था। महाराज ने घोषणा की कि हजार स्वर्ण मुद्राएं उसे मिलेंगी जो इस प्रश्न का सही उत्तर देगा।
सभी लोग चाहते थे कि वे हजार स्वर्ण मुद्राएं जीतें, लेकिन कोई भी सही उत्तर नहीं दे पा रहा था। फिर तेनालीराम उठे और कहा, “महाराज, ब्राह्मण के चरण बेहद पवित्र माने जाते हैं, उनके पैर तीर्थ धाम के समान हैं। इसलिए गौ-चर्म से बने जूते-चप्पल पहनने से गायों को मोक्ष मिलता है।”
महाराज ने कहा, “यह सही नहीं है, गौ-चर्म से बने जूते-चप्पल पहनना जायज नहीं है, चाहे कोई भी हो। लेकिन मैं खुश हूँ कि तेनालीराम ने सही दिशा में उत्तर दिया है।
उसका समाधान बिल्कुल सही है, और उसको हजार स्वर्ण मुद्राएं मिलेंगी।”