बीजापुर के सुल्तान इस्माइल आदिलशाह को डर था कि राजा कृष्णदेव राय अपने प्रदेश रायचूर और मदकल को वापस लेने के लिए हमला कर सकते थे। उसने सुना था कि राजा ने कोडीवडु, कोंडपल्ली, उदयगिरि, श्रीरंगपत्तिनम, उमत्तूर और शिवसमुद्रम जैसे नगरों को अपनी वीरता से जीत लिया था।
सुल्तान ने सोचा कि इन दो नगरों को बचाने का एक ही उपाय हो सकता है, और वह है राजा कृष्णदेव राय की हत्या करवाना। उसने बड़े इनाम की प्रस्तावना की और तेनालीराम के पुराने सहपाठी और उसके मामा के रिश्तेदार, कनकराजू को इस काम के लिए राजी कर लिया।
कनकराजू तेनालीराम के घर पहुंचे। तेनालीराम ने अपने मित्र का खुले दिल से स्वागत किया, उसकी खूब आदरणीय की और अपने घर में उसे ठहराया।
एक दिन, जब तेनालीराम काम से बाहर थे, कनकराजू ने राजा को तेनालीराम के पास से एक संदेश भेजा – “आप इसी समय मेरे घर आएं, और मैं आपको ऐसी अद्वितीय चीज़ दिखाऊंगा, जिसे आपने अपने पूरे जीवन में कभी नहीं देखा होगा।”
राजा बिना किसी हथियार के तेनालीराम के घर पहुंचे। लेकिन बिना किसी पूर्व सूचना के, कनकराजू ने छुरे से उन पर हमला कर दिया। परंतु छुरे की छलने से पहले ही राजा ने कड़ी बाजू से उसका हाथ पकड़ लिया। तब राजा के अंगरक्षकों के सरदारों ने कनकराजू को धर पर पकड़ लिया और उसे तुरंत हिरासत में डाल दिया।
कानून के अनुसार, जो भी व्यक्ति किसी की हत्या करने की कोशिश करता था और उसको आश्रय देता था, वह व्यक्ति मृत्युदंड पाता था। तेनालीराम को भी यही सजा सुनाई गई। उसने राजा से दया की बिनती की।
राजा ने कहा, “मैं राज्य के नियमों के खिलाफ जानकर तुम्हें क्षमा नहीं कर सकता। तुमने उस दुष्ट को अपने यहां आश्रय दिया। तुम कैसे मुझसे क्षमा की आशा कर सकते हो? हाँ, शायद तुम खुद ही अपना सजा चुका सकते हो, तो तुम्हें किस प्रकार की मृत्यु चाहिए?”
तेनालीराम ने हंसते हुए कहा, “मझे बुढ़ापे की मृत्यु चाहिए, महाराज।”
सभी उपस्थित थे और हैरान हो गए। राजा हंसकर बोले, “इस बार भी तुम बच गए, तेनालीराम।”