एक दिन राजा कृष्ण देव राय गहन चिंतन में थे। उनकी हीरे की अंगूठी कहीं गिर गई थी। राजा को अपने द्वारपालों पर शक था। क्योंकि उनके अलावा वहां दूसरा कोई नहीं था। जब राजा ने द्वारपालों से पूछा तो वे सब मना करने लगे।
उन्होंने इस समस्या का हल निकालने के लिए तेनाली रामा को बुलाया और आपबीती सुनाई। तेनाली ने राजा की बात सुनकर सभी द्वारपालों को एकत्रित किया।
तेनाली ने एक कक्ष की ओर इशारा कर द्वारपालों से कहां- आप सब को बारी-बारी इस कक्ष में जाना है, जहां काली माता की मूर्ति रखी है। आप सभी को माता का दायना पैर छूकर आना है। जिसने भी अंगूठी चुराई होगी माता मुझे सपने में आकर उसका नाम बता देंगी।
सभी द्वारपाल बारी-बारी माता का पैर छूकर आ गए। तेनाली ने शुरुआती छ: द्वारपालो के हाथ सुंगे तथा उन्हें जाने दिया। सातवें का हाथ सुंगते ही तेनाली ने कहां महाराज ये है चोर। यह सुनते ही द्वारपाल के हौश उड़ गए। वह राजा से माफी मांगने लगा। लेकिन राजा ने दया न दिखाते हुए उसे जेल में डलवा दिया।
राजा- तेनाली तुमने तो कहां था माता तुम्हारे सपने में आकर बताएंगी, लेकिन तुमने तो अभी बता दिया। ये तुमने कैसे किया?
तेनाली- महाराज ये तो मैंने चोर को भयभीत करने के लिए कहां था, ताकि वह कोई गलती करें। ओर उसने गलती कर दी, मैंने सभी को माता का दायना पैर छूने के लिए कहां था। जिस पर मैंने सुगंधित पदार्थ लगा रखा था। सभी द्वारपालों ने वहीं पैर छुआ लेकिन चोर ने माता का बायां पैर छुआ जिससे उसके हाथ में कोई सुगंध नही आई और आसानी से पकड़ा गया।
शिक्षा:– इंसान अपनी बुराईया कितनी भी छुपा ले एक दिन सत्य का पता लग ही जाता है।